directorsmsg_70th_repu_day

Dear Friends

मैं भारत के 70 वें गणतंत्र दिवस पर आप सभी संकाय सदस्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों, प्रिय विद्यार्थियों, सुरक्षा कर्मियों तथा सभी भारतवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हु।

मित्रों आज हमारी पहचान हमारी अस्मिता यह है कि हम एक आजाद देश के नागरिक है और हमारा देश का संचालन एक लोकतांत्रिक मूल्यों के आधारपर बने संविधान से होता है। यदि आज से १०-२० वर्षों के बाद जब हम अपने स्थायी परिसर में होंगे और तब कोई हमसे पूछें कि हम वर्ष २०१७ में क्या थे। हम किस कैम्पस से आईआईटी चला रहे थे तब किसी को भी यह विश्वास नहीं होगा कि हम एक साथ तीन कैम्पस से इस आईआईटी को संचालित करते थे। हमारे छात्र एक ही दिन कुछ कक्षाएं एक कैम्पस में तो दूसरी कक्षाओं के लिए दूसरे कैंम्पस में जाते थे। इस विद्यार्थियों कि तरह ही हमारी फैकल्टी भी इस प्रकार से कक्षाओं को चलाती थी। हमारे दो ट्रांजिट परिसर में कई असुविधाओं का हमने सामना किया। यह सब बातों पर किसी का भी विश्वास नहीं होगा। मित्रों उसी प्रकार जब हमे आजादी मिली थी तब कई पाश्चात्य चिंतकों का यह मत था कि यह देश अपने आप को एक देश के रुप में कैसे स्थापित करेगा जिसमें कई बोलियां है, भाषाएं है, धर्म है, जातियां है और संस्कृतियां है। किंतु हमारे लोकतंत्र के संस्थापकों ने यह साहसी स्वप्न देखा और इसे पूरा करने का दृढ निश्चय किया जिसकी कल्पना भी तब करना बड़ा ही कठिन प्रतित हो रहा था।

आज हम पूरे विश्व में एक ऐसा स्थान प्राप्त कर चुके है कि संपूर्ण विश्व को हमें संज्ञान में लेना अनिवार्य हो गया है। और यह केवल उन महान विचारकों के दृढ निश्चय का प्रतिफलन है कि हमने सौ से अधिक भाषाएं, बोलियां, जातियों और धर्मों को साथ लेकर किंतु एक लोकतांत्रिक संविधान को सबसे ऊंचा स्थान देकर एक गणतंत्र राष्ट्र की स्थापना की। जब हम स्वतंत्र हुए थे तब २५० साल की गुलामी ने हमें आर्थिक एक प्राकृतिक दृष्या निर्धनता की स्थिति में पहुंचा दिया था। एक और हमारे सामने आर्थिक समस्या थी तो दूसरी और बहुभाषिकता, बहुसांस्कृतिकता की। किंतु हमने इन्हीं समस्याओं को पूरे विश्व के सामने हमारी विशेषताओं के रुप में रखा। बहुभाषिकता, बहुसांस्कृतिकता और अनेकों धर्म की समस्याओं को विशेषताओं में परिवर्तित करने की यात्रा बहुत ही कठिन थी। यह संभव हुआ केवल उन लोकतांत्रिक देश के स्वप्न देखनेवालों के कारण और हर एक सामान्य नागरिक के कारण।

धियो यो नः प्रचोदयात्

जय हिंद